आज 14 सितंबर है। एक पुराना सवाल फिर से हमारे सामने है, क्या हो हमारी भाषा ?
भाषा हो, तो प्रेम की भाषा हो।
भाषा हो, तो सच व ज्ञान की हो।
भाषा हो, तो संवेदना की हो।
भाषा हो, तो जोड़ने की हो।
भाषा हो, तो भाईचारे की हो।
भाषा हो, तो संबल देने--साथ खड़े होने की हो।
भाषा हो, तो भरोसे की हो।
भाषा हो, तो आज़ादी की हो।
भाषा हो, तो अनंत आसमान में उड़ने की हो।
भाषा हो, तो अंधेरे से प्रकाश की हो।
भाषा हो, तो अंधविश्वास के विरुद्ध हो।
भाषा हो, तो संकीर्णता के विरुद्ध हो।
भाषा हो, तो वैज्ञानिक चेतना की हो।
भाषा हो, तो कमजोर के पक्ष की हो।
भाषा हो, तो अन्याय व उत्पीड़न के विरुद्ध हो।
भाषा हो, तो झूठ व नफ़रत के विरुद्ध हो।
भाषा हो, तो घृणा के विरुद्ध हो।
भाषा हो तो श्रेष्ठ, सर्वश्रेष्ठ होने के अहंकार को मिटाने वाली हो।
भाषा हो तो मातृभाषा हो--माँ की भाषा; फिर बिनकहे, बिनसुने, बिनदेखे, बिनछुए जो बचेगी वह होगी भाषा।
और राजभाषा ?
राजभाषा अगर हो--तो हो जनभाषा !
(14 सितंबर 2025)