संजय चौबे देश की विविध समस्याओं के प्रति निरंतर चौकस रहने वाले रचनाकार हैं. उनके लेखन के पीछे राष्ट्रीय सामाजिक-सांस्कृतिक विडंबनाओं से उपजी गहरी पीड़ा ही प्रेरणा बतौर काम करती है. देश की आजादी के दशकों बाद भी हमारे समाज की बहुजन आबादी और देश के कई हिस्सों के नागरिक अनेकशः परतंत्रता की स्थिति से जूझ रहे हैं. उन्हें व्यावहारिक तौर पर देश के स्वतंत्र और खुशहाल नागरिक की हैसियत नहीं प्राप्त हो सकी है. समाज को झूठी बहसों और मुद्दों में उलझाकर वंचित और प्रताड़ित आबादी की यथास्थिति को बनाये रखने हेतु जारी कुचक्र के ताने-बाने को संजय चौबे अपनी रचनाओं के माध्यम से उधेड़कर रख देते हैं.
संजय चौबे की रचनात्मकता के गहरे सामाजिक और राष्ट्रीय सरोकार पाठक को रचना में गहराई तक सोचने-विचारने को बाध्य कर देते हैं. चूँकि लेखक एक कवि भी है, तो कथ्य और शिल्प के स्तर पर भी एक काव्यात्मक गहराई उनकी रचनाओं में सहज ही व्याप्त है.
उनकी प्रकाशित किताबें हैं –
उनकी किताबों/रचनाओं के संबंध में चर्चा से पूर्व संजय चौबे का संक्षिप्त जीवन-वृत्त :
जन्म |
10 फरवरी 1974 बिहार के भागलपुर जिले के सुदूर देहात टीकाचक में |
व्यवसाय |
लेखक (आजीविका हेतु भारत के सबसे बड़े बैंक के वरिष्ठ प्रबंधन श्रेणी में सहायक महाप्रबंधक के रूप में पदस्थापित) |
भाषा |
हिंदी |
सम्प्रति निवास |
मुंबई |
राष्ट्रीयता |
भारतीय |
विधा |
उपन्यास, लेख-आलेख, कविता |
उल्लेखनीय कार्य |
बेतरतीब पन्ने (उपन्यास, प्रकाशन वर्ष : 2019) 9 नवंबर (उपन्यास, प्रकाशन वर्ष : 2015) भीड़-भारत (लेख-संग्रह, प्रकाशन वर्ष : 2021) वह नारी है (स्त्री विमर्श, प्रकाशन वर्ष : 2017) अवसान निकट है (कविता–संग्रह, प्रकाशन वर्ष : 2013) |
ब्लॉग |
संजय चौबे की किताबों पर एक नज़र:
बेतरतीब पन्ने (उपन्यास; 2019)
प्रख्यात आलोचक वीरेंद्र यादव संजय चौबे के उपन्यास 'बेतरतीब पन्ने' के संबंध में बेबाकी से अपनी राय रखते हुए इसे हर तरह के वंचितों के पक्ष में ‘पॉलिटिकल मॉरेलिटी’ और ‘इंटीग्रल रियलिटी’ का उपन्यास कहते हैं. इस उपन्यास में दलित विमर्श के साथ नारी मसले व कश्मीर का दर्द छलकता है.
अगस्त 2019 में प्रकाशित इस उपन्यास के संबंध में 'हिन्दुस्तान' ने इसे ‘तरतीब से बेतरतीब’ कहा. हिन्दुस्तान ने 3 नवंबर 2019 को इसके संबंध में लिखा–
“कभी-कभी बेतरतीब ज़िन्दगी भी ख़ूबसूरत हो जाया करती है. बस, उसमें एक तरतीब होनी चाहिए. उसमें भी कशिश होती है. सपनों का मायावी जंगल होता है. सपने हों तो दहशत और प्यार की गुंजाइश बराबर बनी रहती है. लेकिन प्यार के बीच संदेह जीवन को कितना बदरंग बना सकता है, यह इस उपन्यास को पढ़ते हुए महसूस किया जा सकता है.”
बेतरतीब पन्ने का लोकेल बिहार, यूपी, मध्यप्रदेश से लेकर कश्मीर तक फैला हुआ है. इसमें कश्मीर की वादी-ए-लोलाब की ख़ूबसूरती व दर्द का ज़िक्र तो है लेकिन इसकी मुख्य ज़मीन लखनऊ ही है जहाँ उपन्यास का नायक रहता है, सीबीआई के पूछताछ का सामना करता है; उस लड़की से यहीं मिलता है जिसके लिए बचपन से एक रूमानी एहसास लिए फिर रहा होता है, कैंट के एम बी क्लब में कुर्बानी व शहादत के नए मतलब बताता है. कैंट लखनऊ से होकर गुज़रने वाली महात्मा गांधी मार्ग के किनारे एक पेट्रोल पंप पर लगने वाली ‘इंटेलेक्चुअल्स बैठकी’ लखनऊ की तहज़ीब के दर्शन कराता है. भले ही उपन्यास के सारे किरदार बाहर से आकर यहाँ बसे हैं उनके ऊपर अवध की नजाकत, नफासत और शराफत साफ़ झलकती है. ‘पहले आप–पहले आप’ की लखनवी तहजीब इन किरदारों के लिए महज औपचारिकता न रहकर भरोसे व विश्वास के लिए मर-मिटना हो जाता है.
'दैनिक जागरण' ने इसे लखनऊ में खुलते ‘बेतरतीब पन्ने’ कहा है. उपन्यास कश्मीर व जातिवाद के दर्द को उजागर करता ही लेकिन इसके केंद्र में है – निधि ठाकुर. निधि ठाकुर बचपन से ही हालात की मार खाती वह लड़की है, दुर्भाग्य जिसका पीछा अंत तक नहीं छोड़ता. समानांतर रूप से उपन्यास में निधि की प्रेम कहानी भी चलती है. इस उपन्यास की एक पंच लाइन है जो दिलोदिमाग को झकझोरती है–
“... और इज़्ज़त भी कमाल की चीज है !
उसके छोड़ जाने मात्र से लुट जाएगी, यह मालूम नहीं था.”
'बेतरतीब पन्ने' के संबंध में और जानकारी हेतु/समीक्षा/मीडिया कवरेज का लिंक :
9 नवंबर (उपन्यास; 2015)
सांप्रदायिकता की समस्या पर केंद्रित 2015 में प्रकाशित उपन्यास ‘9 नवंबर’ ने पाठकों व साहित्यकारों का ध्यान आकर्षित किया और इसी उपन्यास से संजय चौबे चर्चा में आए. 'हंस' के मार्च 2015 अंक में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार प्रख्यात कवि ज्ञानेन्द्रपति ने इस उपन्यास के लिये कहा –
“यह एक नयी किताब है... हर अगली रचना नई नहीं होती. आवश्यक है कि नई रचना भीतर से भी नवीनता लिए हुए हो, पाठक का मन एक नए ढंग से आंदोलित हो-–उसको ग्रहण करने की उत्सुकता उसके भीतर उद्दीप्त हो, तब कोई रचना नई होती है.”
उल्लेखनीय है कि साम्प्रदायिकता की समस्या के समाधान हेतु उपन्यास नए आदमी की अवधारणा प्रस्तुत करता है. इसलिए प्रख्यात आलोचक वीरेन्द्र यादव 9 नवंबर को ‘वैकल्पिक दृष्टि का उपन्यास’ मानते हैं.
बकौल कहानीकार/उपन्यासकार व ‘तद्भव’ के संपादक अखिलेश –
“चूँकि यह उपन्यास जीवन का उपन्यास है और जीवन के तर्कों से ही चलता है; ‘9 नवंबर’ एक यूटोपिया के निर्माण से लेकर उस यूटोपिया के विध्वंस की गाथा है.”
2015 में भोपाल के भारत भवन में यंग्स थिएटर ग्रुप्स ने इस उपन्यास का नाटक के रूप में मंचन भी किया था.
इस उपन्यास का अंग्रेजी व उड़िया में अनुवाद भी प्रकाशित हो चुका है. उड़िया के प्रसिद्ध कवि कुमार हसन ने इसका अनुवाद उड़िया में किया है.
'9 नवंबर' के संबंध में और जानकारी हेतु/समीक्षा/मीडिया कवरेज का लिंक :
वह नारी है.. (स्त्री-विमर्श; 2017)
स्त्री-मसलों पर संजय चौबे के 19 लेखों का यह संग्रह 2017 में प्रकाशित हुआ था. ‘अहा ! जिंदगी’ के अक्टूबर 2017 ने इस किताब के संबंध में लिखते हुए कहा –
“यह पुस्तक नारीविमर्श के प्रचलित विमर्शों के साथ-साथ कुछ दूसरे जरूरी मुद्दों और समस्याओं को भी उठाती है. भ्रूणहत्या, जेंडर इनीक्वलिटी, सतीप्रथा, बाल विवाह, संतानोत्पत्ति, अवैध संतान. अफ्स्पा का चंगुल, धार्मिक स्थानों पर प्रवेश की मनाही, गालियों में स्त्री, ऑनर किलिंग, हिंसा, स्वतंत्रता, नैतिकता जैसे सवालों से लिपटी स्त्री के जीवन को पुस्तक के लेखों ने बड़े प्रभावशाली ढंग से छुआ है. पुस्तक विचार के कई सूत्र पाठकों को थमा जाती है.”
इसका नवीन एवं परिवर्द्धित संस्करण 2022 में प्रकाशित हुआ, जिसमें संजय चौबे का एक और लेख शामिल हुआ है.
भीड़-भारत (लेख-संग्रह; 2021)
संजय चौबे का लेख-संग्रह, भीड़-भारत नए बनते भारत की छवियों व यथार्थ से हमारा सामना कराता है. अपने लेखों में संजय चौबे ने उन भारतीय विचारकों, देशभक्तों के हवाले से ही भारतीय समाज, संस्कृति व राजनीति का पुनर्पाठ किया है, जिनके ऊपर छद्म आवरण डालकर उनके विचारों को पलट देने, उनका अपहरण कर लेने जैसी कोशिश की जा रही है. कुल मिलाकर, 'भीड़-भारत' को पढना अपने समय को उसकी तमाम जटिलताओं के साथ समझना व उनके बीच नई संभावनाओं को तलाशने में प्रवृत्त होना है.
'भीड़-भारत' शब्द का प्रयोग संजय चौबे अपनी रचनाओं में बहुत पहले से करते आ रहे हैं और यह संबोधन उन्हीं के द्वारा गढ़ा गया है. 'भारत' बनाम 'भीड़-भारत' से यकीनन इस दौर को समझने में मदद मिलती है.
इस लेख-संग्रह में संजय चौबे के कुल 28 लेख शामिल हैं, जिनमें कुछ लेख कोरोना-काल से भी संबंधित हैं, उदाहरणस्वरुप- 'इबादतगाह में सन्नाटा', 'झूठइ लेना झूठइ देना/झूठइ भोजन झूठ चबेना', 'होनी थी, हो गई', गिद्ध पत्रकारिता'. इनके अतिरिक्त भगत सिंह पर तीन लेख के साथ-साथ नचिकेता, विवेकानंद, बुल्लेशाह आदि को संदर्भित करते कई महत्वपूर्ण लेख इसमें शामिल हैं, जैसे कि 'गो-रक्षा के मसले पर विवेकानंद', 'नचिकेता से डरता समाज', 'भगत सिंह को कितना जानते हैं ?', 'किताब एक ख़तरनाक चीज़ है', 'इक्कीसवीं सदी में अंधविश्वास का महाविज्ञापन' आदि.
अवसान निकट है (कविता-संग्रह; 2013)
‘अवसान निकट है’ संजय चौबे की चर्चित कविताओं का संकलन है. यह उनकी पहली प्रकाशित पुस्तक है. दिलोदिमाग को झकझोरने वाली तमाम कवितायें इसमें संकलित हैं, यथा- दीदी कहती हैं, देव–बीमार व कैदी, पुत्र का आग्रह है के अतिरिक्त निर्भया को लेकर आक्रोश से भरी कविता– ‘एक अनाम लड़की के नाम’. निर्भया पर लिखी कविता उनकी अंतिम कविता थी, इसके बाद उन्होंने हमेशा के लिए कविता लिखना बंद कर दिया और अपने को केवल गद्य-लेखन पर केन्द्रित कर दिया.
संजय चौबे अपने ब्लॉग ‘टीकाचक’ (https://tikachak.blogspot.com/) पर भी लिखते हैं.संजय चौबे का लेखन जारी है और पाठकों को उनकी नई-नई रचनाओं का इंतज़ार रहता है.
Sanjay Choubey or Sanjay Chaubey, born on 10th Feb 1974 in the remote place named Tikachak of Bhagalpur district of Bihar, is the new generation Hindi writer, famous for his thought-provoking writings.
Sanjay Choubey (Sanjay Chaubey) is the famous Hindi writer who is constantly attentive to the diverse problems of the country. The deep pain, bred from the national socio-cultural irony, works as inspiration for his writings. Even decades after the independence of the country, the majority population of our society and citizens in many parts of the country are constantly struggling against various types of subjugation. The citizens at large have not attained the status of an independent and prosperous citizen of the country in the true sense. Sanjay Choubey, through his writings, uncovers the fabric of the vicious cycle created by the privileged class to maintain the status quo of the deprived and oppressed population. He is known for his unique style of writings which exposes the deliberate attempt of the media/privileged class to entangle the innocent citizens in the false debates and issues.
The deep social and national concerns of Sanjay Choubey's writings make the reader think deeply in the real issues of the general public.
He has been writing regularly and his articles are available on ‘TIKACHAK’, a blog (https://tikachak.blogspot.com/)
His published books are –
Awsaan Nikat Hai
In 2013 his collection of poems "Awsaan Nikat Hai" gathered the attention of famous Hindi poet Gyanendrapati. Gyanendrapati pushed Sanjay Choubey for regular writing.
9 November (Novel)
Inspired by Gyanendrapati, Sanjay Choubey started working on his novel "9 November" which was released in Lucknow in the month of January 2015 and very soon it became popular.
The Hindi novel, '9 November' written by Sanjay Choubey revolves around the communal frenzy prevailing in the late eighties and early ninenties. The plot of this novel has been floating in his mind since 1993, after the demolition of Babri Masjid. This novel starts with the opening of gate of Babri Masjid in February 1986 and ends by the tragic demise of the hero of the novel, Shekhar, on the date of "Shila Poojan" at Ram Janma Bhoomi i.e. 9th November 1989. Some of the tragic scenes of the infamous Bhagapur riot of 1989 provoke the readers to think.
A play based on this novel was staged at Antrang Hall, Bharat Bhavan in Bhopal which gathered the attention of media and public. Neeraj Yadav has translated “9 November” to English and famous Odia poet, Kumar Hassan has translated this novel to Odia.
Wah Naari Hai
‘Wah Naari Hai’ is the collection of 19 articles by Sanjay Choubey on women-issues which was published in 2017. 'Aha! Zindagi’, famous Hindi Magazine said, in a review published in the issue of October 2017 : -
"This book raises some other important issues and problems along with the prevailing discourse of feminism e.g. Feticide, gender equality, Satipratha, child marriage, illegal child. ‘Wah Naari Hai’ have touched the life of a woman, very effectively, draped by questions like AFSPA's clutches, prohibition of entry to religious places, women in abuses, honor killing, violence, freedom, morality. This book provokes the reader to think in a different way.”
Betarteeb Panne (Novel)
Betarteeb Panne is the new novel of Sanjay Choubey. The locale of Sanjay Choubey’s novel is spread from Bihar, UP, Madhya Pradesh to Kashmir. It mentions the beauty and pain of Wadi-e-Lolab of Kashmir, but its main ground is Lucknow where the protagonist of the novel lives, facing the CBI interrogation. It is here that the girl, who has been living with a romantic feeling since childhood, reveals new meanings of sacrifice and martyrdom in the MB club of Cantt. Some of the famous critics term it as a Dalit writings, expressing the truth of Dalit society whereas some term it as a feminist novel because it covers the pain of women.
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